नसीराबाद, रायबरेली। सरकारी अमृत सरोवरों ने भले ही निर्माण से जुड़े लोगों की प्यास बुझाई हो लेकिन अब वे खुद बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं।
जानलेवा भीषण गर्मी और 40 डिग्री के पार तापमान में झुलसते बेजुबान पशु पक्षियों की बेबसी पर सरकारी अमलों, जन प्रतिनिधियों और समाज सेवियों की चुप्पी और दायित्व के प्रति लापरवाही भारी पड़ रही है। छतोह ब्लॉक में कई अमृत सरोवर बनवाए गए हैं, जिनकी खुदाई से लेकर सुंदरीकरण तक करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए गए फिर भी उनमें पानी का अभाव है। कहीं घास उगी है तो कहीं धूल उड़ रही है। इनमें से ज्यादातर अपने उद्देश्य को पूरा नहीं करते। जिम्मेदार आंख बंद किए बैठे हैं शायद उनकी जिम्मेदारी सरकारी धन के बंदर बांट तक ही सीमित रही। प्राकृतिक तालाब तो सूखे ही हैं, इन अमृत सरोवरों का अमृत सरकारी अमला पी गया है।अधिकांश सरोवर सूखे पड़े हैं, किसी में कुछ कीचड़ युक्त पानी बचा भी है तो वह भी किसी काम का नहीं। मुख्य मार्गों पर स्थित ग्राम पंचायत गढ़ा और छतोह तो इसकी बानगी भर हैं।न तो ग्राम पंचायत ने इनमें पानी भरवाया और न समाजसेवा के नाम पर अखबारों में चेहरा चमकाने वाले लोगों ने।
अनबोले प्राणियों की इस ज्वलंत समस्या पर एसी में रहने वाले किसी जन प्रतिनिधि या उच्च अधिकारी का ध्यान भी नहीं जा रहा है।
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